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इतिहास

जिला का संक्षिप्त इतिहास

बिहार राज्य के दक्षिण-पूर्व दिशा में यह जिला अवस्थित है। पूर्वी और दक्षिणी क्षेत्र/सीमा इसकी झारखंड राज्य से लगती है। पश्चिमी सीमा जमुई को तथा उत्तर-पश्चिमी सीमा से मुंगेर तथा भागलपुर से जोड़ती है। इसका कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 3020 वर्ग किलोमीटर है। जिले का मुख्यालय बांका शहर है। इस जिला की स्थापना 21 फरवरी, 1991 को हुई। पूर्व में यह भागलपुर जिला का एक अनुमंडल था। प्रशासन को सुगमता से चलाने के लिए यहां एक अनुमंडल बांका तथा 11 प्रखंडों, 2111 गांवों, 185 पंचायतों के साथ दो शहरी क्षेत्र बांका नगर परिषद् व अमरपुर नगर पंचायत बनाया गया है।

प्राच्य इतिहास

इस जिला की एक समृद्ध विरासत है और इसका नजदीकी जुड़ाव इसके पितृ जिला भागलपुर से है जिससे इसे 1991 के जनगणना के आधार पर सृजित किया गया है । अतः बांका का सही इतिहास अवलोकन हेतु भागलपुर जिला के इतिहास को समझना जरूरी है । ग्रंथों एवं पुरानों की संरक्षित परंपरा के अनुसार, अनु के वंशज, महान मनु के पोता ने अनवा साम्राज्य की स्थापना पूर्व में की । तत्परश्चात यह साम्राज्य  पांच भाईयों, जो कि राजा बलि के पुत्र थे, के बीच विभाजित किया गया जिन्हें अंग, बंग, कलिंगा, पुदीना और सुमहा का नाम दिया गया । अंग राजाओं के बीच जिसका कुछ संदरव मिलता है, वह लोमापादा था जो कि अयोध्या के राजा दशरथ का मित्र और समकालीन था । उनका महान प्रपोत्र चम्पा जिसके बाद अंग की राजधानी का चम्पा पड़ा जबकि इसके पूर्व इसका नाम मालिनी हुआ करता था । अथर्ववेद के वैदिक साहित्य में मगध के साथ अंग का प्रथम विवरण मिलता है । बौद्ध धर्म-ग्रंथों में भी उत्तरी भारत के विभिन्न राज्यों में अंग का उल्लेख मिलता है । एक पारंपरिक कथानुसार, अंग-राजा ब्रह्मदेत (ब्रह्मदत्त ) ने मगध के राजा भट्टिय को पराजित किया था । परन्तु बाद में भट्टिय के पुत्र बिम्बसार (545 ईसा पूर्व) ने अपने पिता की हार का बदला ले लिया तथा अंग को मगध के अधीन कर लिया। मगध के अगले राजा अजातशत्रु ने कहा जाता है कि अपनी राजधानी चम्पा स्थानांतरित कर ली थी। सम्राट अशोक की मां सुभद्रांगी जो कि चम्पा क्षेत्र की गरीब लड़की थी, के साथ विन्दुसार का विवाह कराया गया। अंग नंद वंश, मोर्य वंश (324-185 ईसा पूर्व), शुंग वंश (185-75 ईसा पूर्व) और कण्व वंश (75-30 ईसा पूर्व) के मगध साम्राज्य के शासकों के अधीन बना रहा। कण्व वंश के शासन-काल में कलिंग के राजा खारवेल ने मगध और अंग पर चढ़ाई कर दी। आगे की शताब्दीयों का क्षेत्रीय इतिहास अस्पष्ट है जब तक कि चन्द्र गुप्त 1 (320 ईसवी) का राज्याभिषेक न हो गया। अंग महान गुप्त साम्राज्य (320-455 ईसवी) का हिस्सा  बना रहा। यह एक महान भौतिक एवं सांस्कृतिक विकास का काल था। गुप्त वंश के पतन के साथ ही, गौड़ शासक शशांक ने इस क्षेत्र में 20 वर्ष से अधिक समय तक (602-ईसवी) में नियंत्रण किया और अपना प्रभुत्व (625-ईसवी) तक, अपने मृत्यु तक बनाये रखा। उनकी मृत्यु के पश्चा्त गौड़ शक्ति क्षीण हो गई और तब अंग क्षेत्र राजा हर्षवर्धन के प्रभाव में आ गया। उन्होंने माधवगुप्त को मगध का राजा घोषित किया। उसके पुत्र आदित्यसेन ने मंदार-पहाड़ी पर एक शिलालेख लिखवाया था जिससे यह संकेत मिलता है कि नरसिंहा या नरहरि मंदिर की स्थापना उन्होंने ही कराई थी। यूआन चेंग ने अपने यात्रा के क्रम में चम्पा पहुंचा। उन्होंने इसका वर्णन अपने यात्रा-वृतांत में किया है। बंगाल के पाल शासक गोपाल के नैतृत्व में (755 ईसवी) में शासन में आया। उसने बिहार को जीता। उसके बाद धर्मपाल उनके उत्तराधिकारी बने। विग्रहपाल ने अपनी राज-स्थापना अंग में की। एक ताम्र-पत्र अभिलेख के अनुसार नारायणपाल का नाम भागलपुर में मिला। प्रसिद्ध विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना राजा गोपाल द्वारा की गई थी। सेन वंश ने भी पालों के पतन के बाद अंग-क्षेत्र में शासन किया।

इस्लाम युग

सेन वंश के राजा लक्ष्मण सेन (1185-1206) जब शासन में था तभी बख्तियार खिलजी ने 12वीं शताब्दी के अंत तक बिहार और बंगाल की ओर कूच किया। उसने नालंदा एवं विक्रमशिला की प्राचीन विश्व–विद्यालयों को लूट कर ध्वस्त। कर दिया। बख्तियार खिलजी दिल्ली के तुर्क-अफगान शासकों के अधीन बिहार और बंगाल का प्रथम प्रतिनिधि था। दक्षिण बिहार पूरी तरह से (1330 ईसवी) में ही दिल्ली के अधीन हो गया था। चौदहवीं सदी के करीब, सम्पूर्ण बिहार जौनपुर साम्राज्य द्वारा हड़प लिया गया तथा अगले सौ वर्षो तक उसके अधीन रहा। बाद में बंगाल के हुसैन शाह ने जौनपुर के शासन को सफलतापूर्वक अभियान से समाप्त कर दिया। इस बीच हूमायूं ने (1540 ईसवी) में बंगाल पर चढ़ाई कर दी। वह भागलपुर से होकर गुजरा मगर उसे राजमहल पहाडि़यों एवं गंगा की संकीर्ण पट्टी में शेरशाह ने रोक दिया। आगे (1556 ईसवी) में अकबर के बादशाह बनने पर अंततः अफगान ताकत को समाप्त कर मजबूती से मुगल-शक्ति की स्थापना कर दी। भागलपुर मुंगेर सरकार के एक भाग में रूप में प्रस्थापित हुई। अकबर की सेना ने भागलपुर के रास्ता 1573 और 1575 में मार्च किया। 1580 ईसवी में अकबर के विरूद्ध एक सैन्य-विद्रोह हो गया। विद्रोहियों के पास 30000 के लगभग घुड़सवार जवान थे और वे भागलपुर में शिविर बनाकर अड़ गये। अकबर ने अपने वित्त मंत्री होडरमल को विद्रोह को कुचलने के लिए भेजा जिसमें उन्हें सफलता मिली। उसने विद्रोहियों को रसद आपूर्ति करने वाले स्थानीय जमींदारों को ऐसा करने से रोक दिया जिससे कि विद्रोही भागने पर मजबूर हो गए।

ब्रिटिश युग

अगली दो शताब्दी तक भागलपुर जिला जिसमें बांका एक भाग था, मुगल सम्राटों के मुस्लिम प्रतिनिधियों द्वारा शासित होते रहे। 1769 ईसवी में जब ईस्ट इंडिया कम्पनी जिला में सुपरवाइजर के रूप में काम करने लगी तो मुस्लिम प्रतिनिधित्व हटा दिया गया। आगस्ट्स क्ली‍वलैंड 1779 ई0 में जिला के प्रथम कलेक्टर बनाये गए। अपने चार वर्ष के छोटे से कार्यकाल में क्लीवलैंड ने पहाड़ी जनजातियों के विद्रोह को शांत करने में कमयाबी पाई। भागलपुर सिटी में अभी भी एक पिरामिड-स्मारक क्लीवलैंड का अस्तित्व में है। जिले का अनुगामी इतिहास अपेक्षतया घटनाप्रद नहीं है। संथाल विद्रोह के कारण एक नई मन-रेगुलेशन जिला संथाल परगना की स्थापना 1955-56 में करनी पड़ी।

1857 का विद्रोह

1857 के विद्रोह को कोई बड़ा गूंज भागलपुर जिला में बांका सहित, खास नहीं रहा था। दानापुर और मुंगेर के क्षेत्रों में विद्रोह के उदय के समय मिस्टर यूले जो कि जिले का तत्कालीन् आयुक्त हुआ करता था, ने भागलपुर में 100 यूरोपियन (लाईटगन) सैनिकों को सुरक्षात्मक दृष्टि से रोक रक्खा था। उस समय पॉचवें अनियमित सैनिकों को भागलपुर में तथा 32वें नैटिव इन्फ्रे न्ट्री को बौंसी में सुरक्षित रक्खा गया। पांचवी कंपनी ने 14 अगस्त को विद्रोह कर दिया और रोहिणी में मौजूद टुकड़ी से जा मिला। अब संयुक्त विद्रोहियों ने बौंसी की तरफ रूख किया लेकिन 32वीं नेटिव इन्फ्रेन्ट्री के कर्नल ने उन्हें पूर्व चेतावनी दी और शेष विद्रोहियों से उनको मिलने से रोकने में सफलता पाई। तब विद्रोहियों ने देवघर की तरफ मार्च किया। यद्दपि 32वीं नेटिव इन्फेन्ट्री पहले ब्रिटिश के खिलाफ उठ खड़ी नहीं इुई थी फिर भी 09 अक्टूबर को इन्फेन्ट्री ने विद्रोह कर दिया और ले‍फ्टिनेंट कूपर तथा सहायक आयुक्त मिस्टर रोनाल्ड की हत्या कर दी। यह विद्रोह अधिक समय तक नहीं टिक सका और शीघ्र ही विद्रोहियों ने इसके बाद अपने हथियार डालकर मेल कर ली। बांका जिला ने आजादी के आन्दोलन में अपनी महती भूमिका निभाई है। 20वीं सदी के प्रथम दशक के स्वदेशी आंदोलन से बांका खूब प्रभावित रहा। स्वदेशी आंदोलन को आगे बढ़ाने वाली कलकत्ता से सामयिक पत्रिकाएं भागलपुर और बांका क्षेत्र अच्छी-खासी पढ़ी जाती थी। बाद में गांधी के नेतृत्व में भारतीय स्वतंत्रता के प्रारंभिक चरणों में विदेशी कपड़ों का बहिष्कार कार्यक्रम में जिले की प्रभारी सार्वजनिक सहभागिता रही थी। अगले दशक में उभरते छात्र-आंदोलन में बांका ने विशेष जोश के साथ भागीदारी की। इस छात्र-आंदोलन के कुछ वार्षिक अधिवेशन भागलपुर में आयोजित हुए। गांधी जी की असहयोग और सविनय अवज्ञा आंदोलन की पुकार का बांका ने खुलकर साथ दिया था। कांग्रेस कार्यालय, खादी विभाग, तथा चरखा-संघ को पुलिस द्वारा जब्त कर लिया गया था। कोई 1600 लोगों से अधिक को 1930 ई0 में जिले से गिरफ्तार किया गया। 1942 ई0 के भारत छोड़ो आंदोलन में राष्ट्रीय नेताओं की गिरफ्तारी पर कई एक बैठकें यहां की गई और जूलूस निकाले गए। जिले ने आगे की स्वतंत्रता लड़ाई में भी प्रमुख भूमिका निभाई जब तक कि देश ने आजादी प्राप्त नहीं कर ली।