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असौता गांव: कहा जाता है कि यह गांव महारानी चंद्रज्योति द्वारा खड़गपुर छोड़ने के बाद बसाया गया था। महारानी ने असौता में एक किला और एक कुंड का निर्माण कराया था। उसने अपने बेटे के लिए  एक मस्जिद का भी निर्माण कराया था। आज भी किले और मस्जिद के  ध्वंसावशेष देखे जा सकते हैं।

बनहारा गांव: यह गांव अमरपुर के ठीक पश्चिम में स्थित है। स्थानीय लोगों के अनुसार इस गांव को शाह सुजा जो मुगल शासक शाहजहां के समय में बंगाल और बिहार के गवर्नर थे, के द्वारा मुख्यालय बनाया गया था।

डुमरामा गांव: यह गांव अमरपुर प्रखंड मुख्यालय से 3 कि0मी0 की दूरी पर भागलपुर जानेवाली सड़क पर स्थित है । यहां स्थित स्तूपों के अवशेष इस बात की ओर इशारा करते है कि यहां कभी बौद्ध मठ रहे होंगे। स्थानीय मान्यता के अनुसार यह गांव खतौरी प्रधानों का निवास स्थान था जिनमें राजा देवई अंतिम थे जिन्हों ने यहां किले का निर्माण कराया जो खाइयों से घिरे हुए थे।

ज्येष्ठगौरनाथ:  ये जगह चांदन नदी के बाएं तट पर स्थित है जो अमरपुर-बांका मार्ग से 2 कि0मी0 पूर्व में है। यह हिन्दु धर्म का एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। ज्येष्ठगौरनाथ एक शिव मंदिर है जो चांदन नदी के पश्चिम में एक पहाड़ी की उपरी सतह पर एक काली मंदिर और एक प्राचीन कुआं भी अवस्थित है। शिवरात्रि के अवसर पर यहां एक भव्य मेलें का आयोजन होता है।

पापहरणी: मंदार पर्वत की तलहती में एक तालाब है जो पापहरणी के नाम से विख्या्त है । इस तालाब के आस-पास से होते हुए तीन रास्ते पर्वत के ऊपर तक जाती है। इस पर्वत के नीचे बहुत सारे मंदिर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पड़े हैं। पापहरणी के बीचो-बीच महाबिष्णु और महालक्ष्मी का एक मनोरम मंदिर है। पर्वत की चोटी पर दो जैन मंदिर स्थित है। यहां भारी मात्रा में जैन तीर्थयात्री भगवान वासुपूज्य की पूजा के लिए आते हैं। ऐसा माना जाता है कि यह भगवान वासुपूज्य की निर्वाण भूमि है। पर्वत पर बहुत सारे छोट-छोटे तालाब हैं। इनमें से आकाशगंगा और शंख कुंड की गहराई संतोषजनक है। इन कुंडों में सीता कुंड सबसे प्रसिद्ध है। इसका नामकरण देवी सीता के नाम पर किया गया है। ऐसी मान्यता है कि यहां सीता ने स्नान किया था।

लखदीपा मंदिर: इस मंदिर के ध्वंसावशेष भी पहाड़ी की तलहती में स्थित हैं। प्राचीन समय में इस मंदिर में एक लाख दीप जलाए जाते थे। हर घर से एक दीप लाया जाता था। पहले यह क्षेत्र बालिसा के नाम से जाना जाता था। बालिसा पुराण के अनुसार यह जगह शिव का सिद्ध पीठ था। पहाड़ी के ऊपर एक विशाल मंदिर है। इस मंदिर में भगवान राम ने स्वयं को मधुसूदन के नाम से स्थापित किया है। मौजूदा मंदिर का निर्माण जहांगीर के समय में किया गया था। यहां एक नाथ मंदिर भी है जो नाथ संप्रदाय को समझने में मदद करता है। यहां एक विद्या पीठ भी है जिसे देखने और यहां अध्ययन करने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। हर वर्ष 14 जनवरी को यहां मकर संक्रांति के अवसर पर 10 दिनों का एक विशाल मेला आयोजित होता है।

चुटिया गांव: यह गांव शंभूगंज प्रखंड मुख्यालय से 8 कि0मी0 की दूरी पर है। यहां एक पहाड़ी है जिसके ऊपर चुटेश्वरनाथ मंदिर है । पहाड़ी में एक विशाल गुफा भी है। ऐसा कहा जाता है कि पत्थरों पर रथ के पहिए का निशान इस बात का सबूत है कि यहां कभी भीषण युद्ध लड़ा गया था।

गौरीपुर गांव: शंभूगंज प्रखंड स्थित असौता गांव से 3 कि0मी0 की दूरी पर यह गांव स्थित है। खड़गपुर की महारानी चन्द्रंज्योति द्वारा निर्मित शिवमंदिर यहां मौजूद है।

लक्ष्मीपुर गांव: गांव चान्दन नदी पर काटोरिया में ब्लॉक के मुख्यालय के बारे में 29 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व स्थित है। यह राजा लक्ष्मीपुर की पूर्व सीट के रूप में उल्लेख किया जाता है, जिनके किले अभी भी मौजूद हैं।

रूपसा गॉंव: यह रजौन प्रखंड में स्थित एक प्राचाीन गांव है जो चांदन नदी के किनारे भागलपुर- दुमका रोड के पश्चिम में 6 कि0मी0 की दूरी पर स्थित है। यहां काली और दुर्गा के प्राचीन मंदिर है, जहॉं काली पूजा और दुर्गा पूजा के अवसर पर मेले का आयोजन होता है।

श्रावणी मेला: सावन के महीने में तीर्थयात्री (कांवरिया) भगवान शिव को गंगाजल चढ़ाने के लिए सुल्तानगंज से देवघर तक की पैदल यात्रा करते हैं। यह यात्रा 105 कि0मी0 की होती है, जिसमें 64 कि0मी0 बांका में पड़ता है। इस यात्रा में बांका के तीन प्रखंड बेलहर, चांदन और कटोरिया आते हैं। इस मार्ग में एक महिने तक मेले जैसा दृश्य रहता है। पूरा शासन तंत्र जैसे यातायात पुलिस, स्वास्थ्य कर्मी, बिजली विभाग, जलापूर्ति विभाग आदि कांवरियों के कल्याण और सुरक्षा हेतु तत्पर रहते हैं। सरकार कांवरियों को धर्मशालाऍं मुहैया कराती हैं। लाखों की संख्या में कांवरिए इस रास्ते से गुजरते हैं। कई गैर सरकारी संस्थाऍं भी भक्तोंं की सेवा के लिए श्रावणी मेले के दौरान सक्रिय हो जाते हैं।