जिले के बारे में
बांका जिला बिहार राज्य के दक्षिण-पूर्व भाग में अवस्थित हैं इसकी पूर्वी और दक्षिण सीमाएं झारखण्ड राज्य के क्रमशः गोड्डा और देवघर जिले से मिलती हैं जबकि पश्चिम एवं उत्तर-पूर्व में यह क्रमशः जमुई और मुंगर जिले को छूती हैं | पुराना जिला भागलपुर इसके उत्तर दिशा व स्थित है |जिले का भौगोलिक क्षेत्रफल 305621 हेक्टेअर अर्थात 3019.3465 वर्ग किमी हैं | बांका जिला मुख्यालय बांका शहर में ही अवस्थित है | यह जिला 21 फरवरी 1991 को निर्मित हुआ | पूर्व में यह भागलपुर जिले का एक अनुमंडल हुआ करता था |जिला में कुल 11 प्रखंड और 02 शहर है – बांका और अमरपुर | प्रत्येक प्रखंड में कई पंचायत हैं |
क्रम स० | प्रखंड का नाम | अक्षांश | देशांतर | पंचायतो की संख्या |
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1 | अमरपुर | 25.033333333333335 | 86.900000000000 | 19 |
2 | बांका | 24.879722222222224 | 86.920000000000 | 16 |
3 | बाराहाट | 25.22229180000000 | 87.3582870000000 | 15 |
4 | बेलहर | 25.916666666666668 | 86.600000000000 | 18 |
5 | बौंसी | 24.80206270000000 | 87.0236941000000 | 16 |
6 | चान्दन | 24.633333333333333 | 86.66666666666667 | 17 |
7 | धोरैया | 24.88330000000000 | 86.9167000000000 | 20 |
8 | फुल्लीडूमर | 25.97688730000000 | 86.7603421000000 | 11 |
9 | कटोरिया | 24.74753460000000 | 86.7183730000000 | 16 |
10 | रजौन | 25.016666666666666 | 86.98333333333333 | 18 |
11 | शम्भूगंज | 25.083333333333332 | 86.73333333333333 | 19 |
जिले की पहचान मंदर पर्वत जो जिला मुख्यालय से 18 किमी की दूरी पर बौंसी प्रखंड में महाभारत काल से ही स्थित है | प्रत्येक वर्ष जनवरी माह में गौरवशाली बौंसी मेला का यहाँ आयोजन किया जाता हैं | यह मेला १४ जनवरी (मकर संक्रांति ) से प्रारंभ होकर पूरा माह तक प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है | मंदार पर्वत महाभारत कल के स्कन्द पुराण की एक कहानी से भी है |
प्राकृतिक विभाजन
चूँकि जिले की सीमा झारखंड राज्य से लगती है अत: इसका भौतिक अभिलक्षण (प्राकृतिक पर्यावरण ) झारखण्ड के सामान ही है | चांदन इस जिला की मुख्य नदी है |
चांदन नदी जिले की पहाड़ी धाराओं की सबसे बड़ी नदी झारखण्ड राज्य के देवघर के उत्तरी भाग से निकलती है जो बांका से गुजरती हुई घोघा (भागलपुर) में गंगा से जा मिलती है | चांदन नदी परियोजना बांका जिला के दक्षिण परिक्षेत्र जो कि संथाल परगना (झारखण्ड) से जुड़ती है , को छोड़ दिया जाय तो इसका उत्तरी भाग प्राय: समतल है | बांका के नजदीक से दक्षिण भाग में और बाराहाट से दक्षिण यह उच्च –भूमि का हिस्सा बन जाता है | इस प्रकार बांका का 60% क्षेत्र पठारी (पहाड़ी) भाग में पड़ जाता है | बेलहरणी और बडुआ नदी जिले के उत्तर–पश्चिम भाग में बहती है, चान्दन और ओढ़नी मध्य में तथा चीर मंदर पहाड़ी के उत्तर पूर्वी भाग में चान्दन से मिलकर इसके पूरब में बहती हैं |बांका की समतल भूमि यहाँ विभिन्न नदी –धाराओं से विनिर्मित है जिस कारण समतल इलाका काफी उपजाऊ है | ये नदियाँ हालाँकि बारहमासी प्रवाहित है परन्तु ग्रीष्म –काल में सुख जाती है और वर्षा ऋतु में बाढ़ का कराण भी बनती है | चांदन एवं बढुआ नदी पर तटबंध एवं नहर बनाकर इसे उपयोगी बनाया गया है ये नहरे जहाँ उपजाऊ भूमि को संचित करती है वहीं बाढ़ नियंत्रण भी करती है | इन नहरों के जल –प्रबंधन के फलस्वरूप जिला अनाज , फल, सब्जी आदि के मामले में आत्मनिर्भर हो पाया है |
वनस्पति एवं वन्यजीव
जिला वनसंपदा से भरपूर है जो प्राय: बांका, बौंसी , कटोरिया प्रखंड अंतर्गत हैं | यह वनक्षेत्र यहाँ की पहाड़ी दलानों पर अवस्थित है वहीं अन्य दो क्षेत्र में यह उच्चावच में पड़ता है | जंगली इलाको के वृक्षों में साल सबसे महत्वपूर्ण है जबकि आबनूस, आसन , केंदु और महुआ के वृक्ष भी बहुतायत में मिलते हैं | तसर– कीटों का पालन आसन वृक्षों पर किया जाता है | इसके अतिरिक्त बहेरा , कदम , अमलतास के पेड़ भी मिलते हैं | विशिष्ट वृक्षों में अकसिया , बाबुल , शिरीष और सैन–बबूल हैं | फलदार वृक्षों में आम , कटहल सामान्य रूप में मिलते हैं | वनकेला , खजूर , बेर , जामुन अन्य महत्वपूर्ण वृक्षों में से है | जिले में आमतौर पर बन्दर पाए जाते है , विशेषत: हनुमान | कभी – कभी सियार, शेर , भालू तेंदुआ, हाथी भी दिखाई पड़ते हैं | दुसरे जानवरों में बारहसिंघा और सांमर मिलते हैं | यह जिला जंगली हंस , बत्तख , लील और बटेर जैसी पक्षियों का निवास स्थान भी है | मोर , तोता , चील और पंडुक आदि कटोरिया और चांदन के जंगलों में पाया जाता है | गोरैया, कौवा और गिद्दा कुछ अन्य पक्षी हैं | कई प्रकार की मछलियाँ जैसे – कतला, रेहु, बुआरी और टेंगरा साथ ही अन्य मछलियों में बचवा , झींगा और पोठी पाई जाती हैं |
जलवायु
ग्रीष्म और शीत ऋतू जिले की जलवायवीय विशेषता है | ग्रीष्म ऋतू मार्च से जून तक होती है जवकि शीत ऋतू नवंबर से फरवरी तक चलती है | मानसून की शुरुआत जून में होती है और सितम्बर तक बर्षा कराती है जवकि अक्टूबर तक यह समाप्त हो जाती है | हलाँकि जाड़ो में भी कभी –कभी यहाँ बर्षा हो जाती है | सामान्यतया दक्षिण –पश्चिम मानसून जून माह के उत्तरार्द्ध में प्रारंभ होती है | जुलाई और अगस्त महीने में भारी बारिश होती है | पुरे जिले में औसत बर्षा– दर 1200mm है |
भूमि उपयोग एवं कृषि प्रकार
बांका जिले के लोगों का मुख्य पेशा कृषि है | ग्यारह प्रखंडों में सात प्रखंडों की भूमि समतल और उपजाऊ है | शेष चार प्रखंड चान्दन , कटोरिया , बौंसी और बेलहर पठारी इलाके हैं | कुओं और नहरों से सिंचाई की जाती है | 747801 हेक्टेअर कृषि योग्य भूमि में से 66072 हेक्टेअर भूमि सिंचित है | धान जिले की सबसे महत्वपूर्ण फसल है | कुल बोई जानेवाली फसलों में धान का सर्वाधिक हिस्सा है | गेहूं एक प्रमुख रबी फसल है | गन्ना जिले का एक महत्वपूर्ण नकदी फसल है | अमरपुर , रजौन और धोरैया क्षेत्र के किसान प्रचुर मात्रा में गन्ने का उत्पादन करते हैं | इसिलिए गन्ना से गुड़ उत्पादन की कई मिले इस क्षेत्र में मौजूद हैं |
सिंचाई की सुविधा
कृषि मुख्यत:सही समय पर और पर्याप्त मात्रा में जल की उपलब्धता पर निर्भर करती है | प्राचीन समय में जल का मुख्य स्रोत वर्षा था | धीरे- धीरे मानसून की असफलता से या समय से पहले बरसात के कारण सिंचाई की आवश्यकता महसूस की गई | जमींदारी प्रथा के उन्मूलन के पहले जमींदार लोग आहर और पायर का उपयोग करते थे जिससे सिंचाई और नालों का प्रबंधन साथ- साथ हो जाता था | इन नहरों के अलावा कुआँ खोदकर सिंचाई के उद्देश्यों की पूर्ति की जाती थी |स्वतंत्रता पश्चात सरकार ने पंचवर्षीय योजना बनाई तथा सिंचाई के विभिन्न स्कीमों को लागू किया | जिसमें से कुछ मुख्य निम्नलिखित है :-
1- चान्दन जलाशय सिंचाई योजना
2- कझिया डाड़ सिंचाई योजना
3- बडुआ जलाशय सिंचाई परियोजना
4- चान्दन बेलासी सिंचाई स्कीम , बांका
5- ओढ़नी जलाशय परियोजना बांका , फुल्लिडूमर
6- लक्ष्मीपुर जलाशय परियोजना, बौंसी
सिंचाई के साथ – साथ इन जलाशयों में मत्स्य पालन भी होता है | इन जलाशयों से नहरे निकाली गई हैं जो रजौन क्षेत्र तक सिंचाई की जरूरतों को पूरा करती है |
पशुधन
पशुधन का तात्पर्य मवेशियों गायों , भैसों , बैलों , भेड़ों और सूअरों से है | जिले में मवेशियों की गुणवत्ता बहुत अच्छी नहीं है | सरकार ने मवेशियों की नस्लों को सुधारने हेतु कदम उठाए है | कृत्रिम गर्भाधान केंद्र खोले गए है | मवेशियों के लिए कई अस्पताल और जिला अस्पताल भी खोले गए है | पिछले कुछ समय से मवेशियों के मामले में जिले में उल्लेखनीय हुई है | इन प्रयासों के कारण यह जिला दुग्ध उत्पादन में आत्मनिर्भर हुआ है |
मत्स्य पालन
जिले में बहुत सरे जलाशयों और तालाबो का इस्तेमाल मछली पालन के लिए किया जाता हैं| राज्य सरकार ने मत्स्यिकी के विकास हेतु भी कुछ योजनाएँ चलाई हैं| पर इन प्रयासों से मांगों की प्रतिपूर्ति नहीं हो पाई हैं | अमरपुर जिले का मुख्य मछली बाजार और व्यापार केन्द्र हैं | व्यापारी जिले के बाहर भी विभिन्न केन्द्रों से मछली खरीदते हैं |
खान और खनिज
- बालू : चान्दन और ओढ़नी नदी वर्षा ऋतु में भारी मात्रा में बालू लाती हैं| घाटों की नीलामी से जिले को मोटी कमाई होती है|
- चीनी मिट्टी : खनिजों में चीनी मिट्टी, फायर क्ले और अभ्रख मिलते हैं| चीनी मिट्टी बांका के निकट समुखिया और कटोरिया क्षेत्र के सतलेखा में पाया जाता है | खनन कार्य भागलपुर पॉटरी लिमिटेड द्वारा किया जाता है | परिणामतः समुखिया के नजदीक एक सिरामिक क्षेत्र स्थापित किया गया है | कटोरिया के फुलहारा में अभ्रख का भी भंडार है |
- ग्रेनाईट : कटोरिया प्रखंड के टोनापाथर में ग्रेनाईट और गेलेना धातु के भंडार होने की संभावना है |
- उद्योगिकीकरण : उद्योगों के मामलें में बांका जिला पिछड़ा हुआ है | केवल अमपुर प्रखंड में गुड़ बनाने की कुछ मिलें स्थापित की गई हैं | अमरपुर प्रखंड के कटोरिया गाँव में पारंपरिक रूप से तसर की बुनाई का कार्य किया जाता है | जिला प्रशासन इस गाँव में रेशम की बुनाई को बढ़ावा देने के लिए कार्यरत है | लगभग १०० बुनकर परिवार बिदायडीह चुड़ेली, मसुरिया, डुमरा, जगाय जैसे बांका के शहरी क्षेत्रों में निवास करते हैं | इन परिवारों का जीवनयापन मुख्यतः हस्तकरघे पर निर्भर है|
- स्टोन क्रशर उद्योग : बौंसी के क्षेत्रों में एक सस्ता स्टोन क्रशर उद्योग स्थापित है|
- शिवशंकर केमिकल्स वर्क्स : यह उद्योग रजौन में भागलपुर की सीमा के पास भागलपुर हंसडीहा रोड पर स्थित है| अमरपुर में गुड़ के मिलों की संख्या ६५ हैं|
सड़क मार्ग
सड़कें : जिले की सड़कों में सार्वजनिक कार्य विभाग (पी0डब्लू0डी0), नगरपालिका और ग्रामीण सड़कें शामिल हैं।जिले के ग्रामीण क्षेत्र भी जिला मुख्याटलय से सड़कों द्वारा जुड़े हैं। निम्नलिखित पक्की सड़कों का रख-रखाव पी0डब्लू0डी0 द्वारा किया जाता हैं। ये सभी सड़कें राजमार्ग हैं :-
1. बांका – कटोरिया – 32 कि0मी0
2. बांका – अमरपुर – 19 कि0मी0
3. भागलपुर – बौंसी – 30 कि0मी0
4. बांका – बौंसी – 18 कि0मी0
5. बांका – शंभु गंज – 46 कि0मी0
6. बांका – बेलहर – 38 कि0मी0
7. बांका – रजौन – 25 कि0मी0
8. बांका – चांदन – 48 कि0मी0
9. बांका – धोरैया – 48 कि0मी0
10. बांका – बाराहाट – 10 कि0मी0
11. बांका – फुल्लीडुमर – 27 कि0मी0
रेलवे
44 कि0मी0 रेल लाईन भागलपुर के मंदार हिल तक बिछाई गई है। ये रेल लाईन रजौन, बाराहाट और बौंसी प्रखंड को भागलपुर से जोड़ती है। यहां ब्रिटिश काल से ब्रॉडगेज पर रेलगाड़ियाँ चलती रही है। राजेन्द्ररनगर इंटरसिटी बांका से राजेन्द्रनगर तक चलती है । कुछ अन्य स्वी्कृत रेल परियोजनाओं के लिए जिला प्रशासन द्वारा रेल विभाग को भूमि आवंटित की जा रही है । इन रेल सेवाओं के अलावा यात्रियों को बांका से जसीहडीह तक बस सेवाऍं भी मिलती हैं। एक बुकिंग कार्यालय और कम्प्यूटरीकृत आरक्षण कार्यालय बांका शहर में स्थित है।कुछ स्वीकृत परियोजनाऍं निम्नांकित हैं:
1. मंदारहिल – रामपुरहाट
2. सुलतानगंज – देवघर बांका होते हुए
बाजार
जिले में थोक व्यापारियों की संख्या कम है। खुदरा व्यापार बांका, अमरपुर, बौंसी, साहबगंज और कटोरिया में होता है। बांका शहर के खुदरा व्यापारी भागलपुर पर निर्भर है जो बांका से 50 कि0मी0 की दूरी पर स्थित है। यहां की खुदरा दुकानों में लगभग हर प्रकार की वस्तु उपलब्ध है।
ईंधन
ग्रामीण क्षेत्रों में लकड़ी और कोयले का इस्तेामाल खाना पकाने में किया जाता है। लेकिन शहरी इलाके में एल0पी0जी0 वितरक मौजूद हैं फिर भी निम्न आय वर्ग के शहरी लोग लकड़ी और कोयले का इस्तेमाल ही करते हैं। धनी और मध्यम आय वर्ग के लोगों में गैस चुल्हे का प्रचलन है।
बिजली
यह जिला अपनी विद्युत आपूर्ति का बड़ा हिस्सा राज्य विद्युत बोर्ड से प्राप्त करता है। बांका जिले के दोनों शहरों में और ग्रामीण इलाकों में बिजली उपलब्ध है, हलांकि तुलनात्मक रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में विद्युतीकरण की गति मंद है। बांका शहर में एक सब पावर ग्रिड भी स्थित है।
संचार व्यवस्था
जिले के सभी ग्रामीण और शहरी इलाकों में बी0एस0एन0एल0 दूरसंचार सेवा मौजूद है तथा शहरी इलाकों में बहुत सारे टेलीफोन बूथ भी अवस्थित है। शहरी क्षेत्रों में फैक्सी की सुविधा है। निजी टेलीफोन बूथ भी अपनी सेवाएं प्रदान करती हैं।
प्रशासन
बांका जो भागलपुर जिले का एक अनुमंडल था एक जिले के रूप में 21 फरवरी 1991 को अस्तित्व में आया। जिले का दर्जा मिलने के बाद यह तेजी से विकसित हुआ। एक नए भवन में समाहरणालय का प्रारंभ 2000 से हुआ। अनुमंडल अस्पताल को प्रोन्नित करके जिला अस्पताल बनाया गया।
सामाजिक/ स्वतंत्रता संग्राम
1857 का सैनिक विद्रोह भागलपुर जिले में कुछ खास असर नहीं छोड़ पाया था। उस समय 32वीं नेटिव इन्फैंट्री बौंसी में स्थित थी। स्वतंत्रता संग्राम से बांका अछूता नहीं था। भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष में बांका जिले के सेनानियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। बांका के कई वीर सपूतों ने देश की आजादी के लिए अपनी कुर्बानी दी है।शहीद सतीश चंद्र झा उन वीर सपूतों में से एक है। 11 अगस्त को पटना सचिवालय के सामने ब्रिटिश प्रशासन द्वारा उन्हें गोलियों से भून दिया गया था । खड़हारा के सतीश चंद्र झा उन शहीदों में तीसरे स्थान पर हैं जिनकी प्रतिमा पटना सचिवालय के सामने स्थापित की गई है । उनकी एक और प्रतिमा ढाकामोड़ में भागलपुर- हंसडीहा मार्ग पर स्थापित की गई है जो जिला मुख्यालय से 8 मि0मी0 की दूरी पर स्थित है। बांका जिले में गांधीजी द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन और सविनय-अवज्ञा आंदोलन को भारी जनभागीदारी मिली थी। स्वेदेशी आंदोलन भी इस जिले में काफी प्रभावकारी रही थी।कुछ अन्य शहीदों में अद्या प्रसाद सिंह, यमुना प्रसाद सिंह, गूदड़ सिंह (बेलहर), महेन्द्र गोप, श्री गोप (लकड़ीकोला) बांका, पशुपति सिंह (बसमत्ता, कटोरिया) का नाम उल्लेखनीय हैं | जिलें में देश की आजादी हेतु उत्तरोत्तर प्रयास होते रहे जो आजादी मिलने तक जारी रही।
सामाजिक सांस्कृतिक घटनाऍ
जिले में त्योहारों और मेलों का आयोजन अलग-अलग समुदायों द्वारा विभिन्न अवसरों पर किया जाता रहा है। यह अब भी चलन में है। धार्मिक, ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्वो के स्थानों एवं पर्यटन रूचि के जिला स्थित शहर, गांव एवं स्थानों का संक्षित विवरण:
अमरपुर प्रखंड
अमरपुर गांव:अमरपुर प्रखंड मुख्यालय से 19 कि0मी0 की दूरी पर अमरपुर गांव स्थित है, यह बांका-शंभूगंज मार्ग पर है। अमरपुर भागलपुर से 26 कि0मी0 की दूरी पर भागलपुर-कजरैली मार्ग पर स्थित है। स्थानीय मान्यता के अनुसार यह गांव शाह उमर जो शाह सुजा (बिहार के गवर्नर) के मंत्री थे द्वारा बसाया गया था। उन्होंने उन लोगों को पुनः बसाया जिन्होंने पतवै गांव को छोड़ दिया था जो चांदन नदी द्वारा नष्ट कर दिया गया था।
असौता गांव:कहा जाता है कि यह गांव महारानी चंद्रज्योति द्वारा खड़गपुर छोड़ने के बाद बसाया गया था। महारानी ने असौता में एक किला और एक कुंड का निर्माण कराया था। उसने अपने बेटे के लिए एक मस्जिद का भी निर्माण कराया था। आज भी किले और मस्जिद के ध्वंसावशेष देखे जा सकते हैं।
बनहारा गांव:यह गांव अमरपुर के ठीक पश्चिम में स्थित है। स्थानीय लोगों के अनुसार इस गांव को शाह सुजा जो मुगल शासक शाहजहां के समय में बंगाल और बिहार के गवर्नर थे, के द्वारा मुख्यालय बनाया गया था।
डुमरामा गांव: यह गांव अमरपुर प्रखंड मुख्यालय से 3 कि0मी0 की दूरी पर भागलपुर जानेवाली सड़क पर स्थित है । यहां स्थित स्तूपों के अवशेष इस बात की ओर इशारा करते है कि यहां कभी बौद्ध मठ रहे होंगे। स्थानीय मान्यता के अनुसार यह गांव खतौरी प्रधानों का निवास स्थान था जिनमें राजा देवई अंतिम थे जिन्हों ने यहां किले का निर्माण कराया जो खाइयों से घिरे हुए थे।
ज्येष्ठगौरनाथ: ये जगह चांदन नदी के बाएं तट पर स्थित है जो अमरपुर-बांका मार्ग से 2 कि0मी0 पूर्व में है। यह हिन्दु धर्म का एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। ज्येष्ठगौरनाथ एक शिव मंदिर है जो चांदन नदी के पश्चिम में एक पहाड़ी की उपरी सतह पर एक काली मंदिर और एक प्राचीन कुआं भी अवस्थित है। शिवरात्रि के अवसर पर यहां एक भव्य मेलें का आयोजन होता है।
बौंसी प्रखंड
मंदार पर्वत: यह बौंसी से लगभग 5 कि0मी0 उत्तर में स्थित है। इस पहाड़ी की ऊॅंचाई 700 फीट है। पौराणिक कथाओं के अनुसार यह पर्वत बहुत पवित्र है। स्कंद पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार इसका संबंध अमृत मंथन (समुन्द्र मंथन) से है जिसके कारण इसका धार्मिक महत्व है और यह श्रद्धालुओं के आकर्षण का केन्द्र है।
पापहरणी:मंदार पर्वत की तलहती में एक तालाब है जो पापहरणी के नाम से विख्या्त है । इस तालाब के आस-पास से होते हुए तीन रास्ते पर्वत के ऊपर तक जाती है। इस पर्वत के नीचे बहुत सारे मंदिर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पड़े हैं। पापहरणी के बीचो-बीच महाबिष्णु और महालक्ष्मी का एक मनोरम मंदिर है। पर्वत की चोटी पर दो जैन मंदिर स्थित है। यहां भारी मात्रा में जैन तीर्थयात्री भगवान वासुपूज्य की पूजा के लिए आते हैं। ऐसा माना जाता है कि यह भगवान वासुपूज्य की निर्वाण भूमि है। पर्वत पर बहुत सारे छोट-छोटे तालाब हैं। इनमें से आकाशगंगा और शंख कुंड की गहराई संतोषजनक है। इन कुंडों में सीता कुंड सबसे प्रसिद्ध है। इसका नामकरण देवी सीता के नाम पर किया गया है। ऐसी मान्यता है कि यहां सीता ने स्नान किया था।
लखदीपा मंदिर:इस मंदिर के ध्वंसावशेष भी पहाड़ी की तलहती में स्थित हैं। प्राचीन समय में इस मंदिर में एक लाख दीप जलाए जाते थे। हर घर से एक दीप लाया जाता था। पहले यह क्षेत्र बालिसा के नाम से जाना जाता था। बालिसा पुराण के अनुसार यह जगह शिव का सिद्ध पीठ था। पहाड़ी के ऊपर एक विशाल मंदिर है। इस मंदिर में भगवान राम ने स्वयं को मधुसूदन के नाम से स्थापित किया है। मौजूदा मंदिर का निर्माण जहांगीर के समय में किया गया था। यहां एक नाथ मंदिर भी है जो नाथ संप्रदाय को समझने में मदद करता है। यहां एक विद्या पीठ भी है जिसे देखने और यहां अध्ययन करने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। हर वर्ष 14 जनवरी को यहां मकर संक्रांति के अवसर पर 10 दिनों का एक विशाल मेला आयोजित होता है।
शंभूगंज प्रखंड
चुटिया गांव: यह गांव शंभूगंज प्रखंड मुख्यालय से 8 कि0मी0 की दूरी पर है। यहां एक पहाड़ी है जिसके ऊपर चुटेश्वरनाथ मंदिर है । पहाड़ी में एक विशाल गुफा भी है। ऐसा कहा जाता है कि पत्थरों पर रथ के पहिए का निशान इस बात का सबूत है कि यहां कभी भीषण युद्ध लड़ा गया था।
गौरीपुर गांव: शंभूगंज प्रखंड स्थित असौता गांव से 3 कि0मी0 की दूरी पर यह गांव स्थित है। खड़गपुर की महारानी चन्द्रंज्योति द्वारा निर्मित शिवमंदिर यहां मौजूद है।
धोरैया प्रखंड
धनकुंड गांव- गांव टेकानी रेलवे स्टेिशन से 10 कि0मी0 की दूरी पर धोरैया प्रखंड में स्थित है। यह अपने शिव मंदिर के कारण मशहूर है। यहां शिवरात्रि के अवसर पर भव्य मेला लगता है।
कटोरिया प्रखंड
इंद्रावरण गांव- यह गांव प्रखंड मुख्यालय से कुछ दूरी पर कटोरिया-देवघर मार्ग में स्थित है। यहां सुल्तानगंज से देवघर तक पैदल यात्रा करने वाले तीर्थयात्रियों के लिए धर्मशालाएं हैं।
लक्ष्मीपुर गांव- यह गांव चांदन नदी के किनारे कटोरिया प्रखंड मुख्यालय से 29 मि0मी0 दक्षिण-पूर्व में स्थित है। यहॉं लक्ष्मीपुर राजा के किले के अवशेष देखें जा सकते हैं।
रजौन प्रखंड
रूपसा गॉंव– यह रजौन प्रखंड में स्थित एक प्राचाीन गांव है जो चांदन नदी के किनारे भागलपुर- दुमका रोड के पश्चिम में 6 कि0मी0 की दूरी पर स्थित है। यहां काली और दुर्गा के प्राचीन मंदिर है, जहॉं काली पूजा और दुर्गा पूजा के अवसर पर मेले का आयोजन होता है।
श्रावणी मेला- सावन के महीने में तीर्थयात्री (कांवरिया) भगवान शिव को गंगाजल चढ़ाने के लिए सुल्तानगंज से देवघर तक की पैदल यात्रा करते हैं। यह यात्रा 105 कि0मी0 की होती है, जिसमें 64 कि0मी0 बांका में पड़ता है। इस यात्रा में बांका के तीन प्रखंड बेलहर, चांदन और कटोरिया आते हैं। इस मार्ग में एक महिने तक मेले जैसा दृश्य रहता है। पूरा शासन तंत्र जैसे यातायात पुलिस, स्वास्थ्य कर्मी, बिजली विभाग, जलापूर्ति विभाग आदि कांवरियों के कल्याण और सुरक्षा हेतु तत्पर रहते हैं। सरकार कांवरियों को धर्मशालाऍं मुहैया कराती हैं। लाखों की संख्या में कांवरिए इस रास्ते से गुजरते हैं। कई गैर सरकारी संस्थाऍं भी भक्तोंं की सेवा के लिए श्रावणी मेले के दौरान सक्रिय हो जाते हैं।